Thursday, June 19, 2008

वो तो खाली बात के छलिया


हम तो खाली बात के रसिया

इश्क़ न कर पाए

वो तो खाली बात के छलिया

इश्क़ न कर पाए

हमने ज़ुबां खोली तो उसमें

दिल भी बोल उठा

वो तो खाली चुप्पी साधे

मंद-मंद मुस्काए

अपने धड़कते दिल को हमने

क़दमों पे बिछा दिया

नाज़-ओ-अदा से फ़ेर के मुंह

वो हमको तड़पाए

कितना लंबा सफ़र तय किया

सांसें उखड़ गईं

आह ! न निकली, वाह ! न निकला

चार क़दम न आए ।।

1 comment:

SWETA TRIPATHI said...

छलावा कस बात का अच्छा लिखते हो.लेकिन हर चींज अपने नजरिए से ही मत देखा करो कभी दूसरों के नजरिए से भी कुछ लिखा करो.तो अच्छा लगेगा