Tuesday, June 17, 2008

ताजमहल था ख्वाबों का...



एक नशा सा तारी था, रफ्ता-रफ्ता उतर गया

ताजमहल था ख्वाबों का, ज़र्रा-ज़र्रा बिखर गया

धूप खिली थी आंगन में, लम्हा-लम्हा सिमट गई

चांद टिका था खिड़की पे, हल्का-हल्का उतर गया

फूल खिले थे गुलशन में, पत्ता-पत्ता ज़र्द हुआ

स्याह बहुत था बादल ये, टुकड़ा-टुकड़ा बिखर गया

ताब बहुत था सांसों में, धड़कन-धड़कन होम हुई

झील सी गहरी थी आंखें, क़तरा-कतरा तरस गया

एक इशारे में वो जादू, जाते-जाते जान बची

जोश बहुत था इस दिल में, डरता-डरता ठहर गया ।

1 comment:

chanda said...

जोश बहुत था इस दिल में, डरता-डरता ठहर गया ।
ये लाइन वाकई दिल से लिखी है...इस ब्लाग की खासियत ही ये है कि इसमे जो भी लिखा है दिल से जिया है

चंदा कंवर