एक नशा सा तारी था, रफ्ता-रफ्ता उतर गया
ताजमहल था ख्वाबों का, ज़र्रा-ज़र्रा बिखर गया
धूप खिली थी आंगन में, लम्हा-लम्हा सिमट गई
चांद टिका था खिड़की पे, हल्का-हल्का उतर गया
फूल खिले थे गुलशन में, पत्ता-पत्ता ज़र्द हुआ
स्याह बहुत था बादल ये, टुकड़ा-टुकड़ा बिखर गया
ताब बहुत था सांसों में, धड़कन-धड़कन होम हुई
झील सी गहरी थी आंखें, क़तरा-कतरा तरस गया
एक इशारे में वो जादू, जाते-जाते जान बची
जोश बहुत था इस दिल में, डरता-डरता ठहर गया ।
1 comment:
जोश बहुत था इस दिल में, डरता-डरता ठहर गया ।
ये लाइन वाकई दिल से लिखी है...इस ब्लाग की खासियत ही ये है कि इसमे जो भी लिखा है दिल से जिया है
चंदा कंवर
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