Friday, April 25, 2008
वफ़ा का सबक़
(बेताल के संगी-साथियों, लंबे अरसे बाद यहां कुछ ला पाया हूं...कुछ अपनी बातें तो कुछ औरों की....कई बार उन लोगों के नाम मुझे याद नहीं रहते....इसलिए माफ़ करें....मुझे इस बात का अफ़सोस रहेगा....लेकिन दोस्तो, उन्होंने जो अच्छी बात कही उसे मैं ज्याद से ज्यादा लोगों के साथ शेयर करना चाहता हूं...और अपनी बातों से कम अहमियत उन्हें नहीं देता....शुरुआत भी मैं एक कवियित्री की रचना से ही कर रहा हूं..उनका नाम मुझे याद नहीं...)
वो भूलते हों तो भूल जाएं
वफ़ा का सबक़
हमारी तो याददाश्त अच्छी है।
हमक़दम बन के वो रास्ता बदल लें
सफ़र में तो क्या ?
अपनी तो फ़ितरत सच्ची है।
वो रखते हों भोर में नाप-तौल कर क़दम
हमें तो अंधेरों की भी छलांग लगती अच्छी है।
वो खाते हों आम पक जाने के बाद
हमें तो कच्ची अमिया भी लगती अच्छी है।
प्यार में यूं नफ़ा-नुक़सान क्या सोचना ?
ये सीधी सड़क तो नहीं !
कूद जाओ झाड़ियों में तो एक दिन
बनती पगडंडी पक्की भी है।।
शेक्सपियर की प्रेमिका !
प्यार और प्रेमिका के लिए मशहूर नाटककार शेक्सपियर की ताल (शायद ख्वाब में जीने वाले आज के युवाओं का बुख़ार सही तरह से डायग्नोज़ हो पाए)
'' मेरी प्रेमिका की आंखें सूरज जैसी नहीं हैं...मूंगा भी उसके होठों से ज्यादा रंगीन है....बर्फ भी उससे ज्यादा श्वेत है और काले बादलों का रंग भी उसके बालों से ज्यादा गहरा है....गुलाब भी उसके गालों से ज्यादा कोमल है...लेकिन फिरभी उसकी सांसों की महक मुझे इन सबसे अच्छी लगती है। मैं उसके चेहरे को पढ़ सकता हूं...मुझे उसमें नज़र आता है मेरे लिए समर्पण और वह प्रेम रस जिसके लिए मैं बरसों से प्यासा था। मुझे उसकी आवाज़ में संगीत की मिठास लगती है। मैने कभी ईश्वर को नहीं देखा, लेकिन मैं अपनी प्रेयसी में उसके दर्शन कर पाता हूं। जब वो ज़मीन पर पैर रखती है..ऐसा लगता है मानो स्वर्ग से उतर रही हो। हो सकता है यह सब मेरी कल्पना हो, लेकिन मैं उससे प्रेम करता हूं यह सच्चाई है।। ''
'' मेरी प्रेमिका की आंखें सूरज जैसी नहीं हैं...मूंगा भी उसके होठों से ज्यादा रंगीन है....बर्फ भी उससे ज्यादा श्वेत है और काले बादलों का रंग भी उसके बालों से ज्यादा गहरा है....गुलाब भी उसके गालों से ज्यादा कोमल है...लेकिन फिरभी उसकी सांसों की महक मुझे इन सबसे अच्छी लगती है। मैं उसके चेहरे को पढ़ सकता हूं...मुझे उसमें नज़र आता है मेरे लिए समर्पण और वह प्रेम रस जिसके लिए मैं बरसों से प्यासा था। मुझे उसकी आवाज़ में संगीत की मिठास लगती है। मैने कभी ईश्वर को नहीं देखा, लेकिन मैं अपनी प्रेयसी में उसके दर्शन कर पाता हूं। जब वो ज़मीन पर पैर रखती है..ऐसा लगता है मानो स्वर्ग से उतर रही हो। हो सकता है यह सब मेरी कल्पना हो, लेकिन मैं उससे प्रेम करता हूं यह सच्चाई है।। ''
मैं और मेरा साया
मिरे साथ रहता था साया हमेशा
मगर इन दिनों हम अलग हो गए हैं
उसे ये शिकायत थी मुझसे
कि उसे मिटाने की ख़ातिर ही मैं यूं
अंधेरों में चलता हूं
ताकि वो मेरा तआकुब न कर पाए, लेकिन
मुझे ये शिकायत थी, मैं रौशनी में
अकेला भी चल सकता था
अंधेरे के जिस वक्त
मुझको ज़रूरत थी अहबाब की
वो ग़ायब था
उसका निशां तक नहीं था
मिरे साथ रहता था साया मिरा
शरीक-ए-हयात और साथी मिरा
मगर इन दिनों हम अलग हो गए हैं।।
मुझे पुकार लो
कविवर हरिवंश राय बच्चन की एक अमर रचना---
इसलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !
ज़मीन है न बोलती न आसमान बोलता
जहान देखकर मुझे नहीं ज़बान खोलता
नहीं जगह कहीं जहां न अजनबी गिना गया
कहां-कहां न फिर चुका दिमाग़ दिल टटोटलता
कहां मनुष्य है कि जो उम्मीद छोड़कर जिया
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !
तिमिर-समुद्र कर सकी न पार नेत्र की तरी
विनिष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी
न कूल भूमि का मिला, न कोर भोर की मिली
न कट सकी न घट सकी, विरह भरी विभावरी
कहां मनुष्य है जिसे कमी खली न प्यार की
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे दुलार लो !
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !
उजाड़ से लगा चुका उम्मीद मैं बहार की
निदाघ से उम्मीद की बसंत के बयार की
मरुस्थली मरीचिका सुधामयी मुझे लगी
अंगार से लगा चुका उम्मीद मैं तुषार की
कहां मनुष्य है जिसे न भूल शूल सी गड़ी
इसीलिए खड़ा रहा कि भूल को सुधार लो !
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो !
अपना-अपना रास्ता
भले समय की बात है
भली सी एक शक्ल थी
न ये कि ख़ासो ख़ास हो
न देखने में आम सी
न ये कि वो चले तो
कहकशां सी रहगुज़र लगे
मगर वो साथ हो तो फिर
भला भला सफ़र लगे
न आशिक़ी जुनून की
कि ज़िंदगी अज़ाब हो
न इस क़दर सुपुर्दगी
कि बदमज़ा हों ख्वाहिशें
न इस क़दर कठोरपा
कि दोस्ती ख़राब हो
न ऐसी बेतकल्लुफ़ी
कि आइना हया करे
कभी तो बात की ख़फी
कभी सुखोद की सुख़न
कभी तो कश्त-ए-ज़ाफरां
कभी उदासियों का बन।
सुना है एक उम्र है
मुआमलाते दिल की भी
विसाल-ए-जां फ़िदा तो क्या
किस्सा-ए-जां गुसल की भी।
तो एक रोज़ क्या हुआ
वफ़ा पे बहस छिड़ गई
मैं इश्क़ को अमर कहूं
वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई
मैं इश्क़ का असीर था
वो इश्क़ को क़फ़स कहे
शज़र हुज़ूर नहीं कि हम
हमेशा पाक सिल रहें
न ठौर हैं कि रस्सियां
गले में मुस्लसिल रहें
मोहब्बतों की ग़ुस्सतें
हमारे दस्त-ए-ख्वां में हैं
बस एक दर से निस्बतें
शज़ान-ए-बा-वफ़ा में हैं
मैं पेंटिंग नहीं कि
एक फ्रेम में रहूं
जो मन का मीत है
उसी के प्रेम में रहूं
तुम्हारी सोच जो भी हो
मैं ऐसी सोच की नहीं
मुझे वफ़ा से बैर है
ये बात आज की नहीं।
न उसको मुझ पे नाज़ था
न मुझको उससे ज़ोम ही
जो एक ही कोई न हो
तो क्या ग़म-ए-शिक़स्तगी
तो अपना-अपना रास्ता
हंसी-खुशी बदल लिया
वो अपनी राह चल दिया
मैं अपनी राह चल दिया।
भली सी उसकी शक्ल थी
भली सी उसकी दोस्ती
अब उसकी याद रात-दिन
नहीं, मगर कभी-कभी।।
कैसे-कैसे यार
चंद सतरें जो किसकी हैं याद नहीं...लेकिन जो है वो हमेशा याद रखने वाली हैं
तुम भी निकले कच्चे यार
तुमसे अच्छे बच्चे यार
किया भरोसा तुम पर मैने
खाते फिरते गच्चे यार।
मान गए तुम कितनी जल्दी
मेरी पहरेदारी को
जाने किसने आग लगाई
हम न इतने लुच्चे यार।
हमने क्या-क्या जतन किए
अपनी साख़ बचाने को
पर तुमने इल्ज़ाम लगाए
हरदम खाए गच्चे यार।
फिर टूटा विश्वास हमारा
फंसकर दुनियादारी में
किसको दिल का ज़ख्म दिखाएं
मिलते हैं कब सच्चे यार।
जब भी सोचूं गुज़री बातें
अपना जी भर आता है
बगुल पंख से धवल सुनहरे
दिन थे कितने अच्छे यार।।
तुम भी निकले कच्चे यार
तुमसे अच्छे बच्चे यार
किया भरोसा तुम पर मैने
खाते फिरते गच्चे यार।
मान गए तुम कितनी जल्दी
मेरी पहरेदारी को
जाने किसने आग लगाई
हम न इतने लुच्चे यार।
हमने क्या-क्या जतन किए
अपनी साख़ बचाने को
पर तुमने इल्ज़ाम लगाए
हरदम खाए गच्चे यार।
फिर टूटा विश्वास हमारा
फंसकर दुनियादारी में
किसको दिल का ज़ख्म दिखाएं
मिलते हैं कब सच्चे यार।
जब भी सोचूं गुज़री बातें
अपना जी भर आता है
बगुल पंख से धवल सुनहरे
दिन थे कितने अच्छे यार।।
किलकारी
ये एक आवाज़ भर नहीं है
किसी का रोना-धोना नहीं है
बेहद पाक और नवेली
ये आवाज़ है
मेरे बच्चे की किलकारी
जिससे गूंजे है दिग-दिगंत, मेरा संसार।
कानों से होता हुआ,
मेरे जीवन में रस घोलता इसका सुर
है आज मेरा संबल, कल के जीवन का आधार।
कोई भी मत रोकना इस लय को
मत कराना कभी इसे चुप।।
मां
आज जो तुम महसूस कर रही हो अपने भीतर
एक स्पंदन।
अपनी नस-नस में दौड़ता आवेग
शायद समझ पाओ अपने पूर्णत्व को।
तुम्हारा नाम बदलेगा
जो तुम्हे देगा धरती के समान दर्ज़ा
धरती, जो संजोए है अपने भीतर अमूल्य रत्न।
तुम भी तो रत्नगर्भा हो, सबसे बड़ी।
हर पल तुम्हारी सांसों में जी रहा है एक नया जीवन
तुम उसकी जननी बनोगी,
लेकिन उसका ऋण भी तुम पर कम नहीं होगा
तुम्हारे जीवन के अंतिम सच को वही सामने लाएगा
तुम्हें पुकारेगा-मां।
मां, तुम्हारा परम वैभव, तुम्हारा विराट अस्तित्व
लेकिन वह मेरे ऊपर भी करेगा उपकार
मेरे भीतर की अस्थिरता और मन में लाएगा चिरशांति।
अब तुम होगी मां, सिर्फ मां
बेटी, प्रेयसी या पत्नी नहीं।।
परिवर्तन
जब बदलेंगे मूल्य
बदलेंगे कुछ इस तरह
कि आज के बदले हुए मूल्यों में भी दिखेगा बदलाव
वापस किसी दकियानूसी समाज में नहीं
एक नए और बेहतर समाज में जाकर रुकेगा ये परिवर्तन चक्र।
यह क्षणिक ठहराव ही दिखा देगा उस समाज का अक्स
जहां होगी
नए ज़माने की सच्चाई, निश्छलता, दृढ़ता
और होगा कल का उत्साह, विस्तार व प्यार
ऐसा नया ज़माना जिसमें होगी छाप
हर काल की सच्चाइयों की, अच्छाइयों की।
क्योंकि, सच में
इस बीच की पीढ़ी ने मूल्य बदले नहीं बिगाड़े हैं।
परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है
फिर वो कैसे हो सकता है विध्वंसात्मक
नहीं ! विकृति ही है नकारात्मक
तो हे विकृति के नायक, बीच की पीढ़ी के लोग, आज के काल
तुम जो बिगड़े बैठे हो
लाओ थोड़ा सा बदलाव
देखो बदलकर अपनी विकृत चाल
और देखो,
देखो कि सब-कुछ
सब-कुछ कितना सीधा है, सादा है, प्यारा है।।
आसमान से टूटा तारा
किस क़ीमत पर क्या खुशियां पाई हैं तुमने, तुम जानो
हम तो इक मासूम कली की मौत का मातम करते हैं।
दीप बुझा कर साल किया रौशन कैसे ये तुम जानो
हम तो 365 दिन की बिखरी रातें गिनते हैं।
छोड़ के दो पग, साथ जुड़े कितने क़दमों से, तुम जानो
हम तो बिछड़े क़दमों की बस दूर से आहट सुनते हैं।
चमकीली दुनिया के पीछे, कहां चलीं तुम, तुम जानो
हम तो सीधी-सादी दुनिया के, टूटे सपने बुनते हैं।
खुद तुमने तय की जो मंज़िल, कहां है अब वो तुम जानो
हम तो हर दिन तुम दोनों के, बीच की दूरी तकते हैं।।
कैसा प्यार !
धूमिल जी ने आज के युवा प्यार को लेकर कभी दो लाइनें कहीं थीं---
'' चुटकुलों से घूमती लड़कियों के स्तन नकली हैं
और नकली हैं युवकों के दांत। ''
इस अमूल्य ज्ञान के सहारे बेताल की लय कुछ यूं कहती है-
कैसा प्यार !
ढाई अक्षर का सिमटा हुआ शब्दभर
अपने पहले अक्षर सा अधूरा
पूर्णता की चाह में एकाकी, जीवनभर।
कैसा प्यार !
नज़रों के नज़रें मिले रहने तक
क़ायम है बस जिसका संसार।
कैसा प्यार !
दिल में हज़ार तहें लिए
सोना एकसाथ बिस्तर पर।
कैसा प्यार !
रूप और यौवन की बगिया में
लगाना मेंहदी की चाहरदीवार।
कैसा प्यार !
मोड़ आने से पहले तक
हमक़दम बनकर चलना, बेज़ार।
कैसा प्यार !
दीप के बुझने तक कर पाना
रंगीन सितारों का इंतज़ार।
कैसा प्यार !
बार-बार कहने की ज़रूरत है क्या
और चुप हो जाना, हर बार।।
'' चुटकुलों से घूमती लड़कियों के स्तन नकली हैं
और नकली हैं युवकों के दांत। ''
इस अमूल्य ज्ञान के सहारे बेताल की लय कुछ यूं कहती है-
कैसा प्यार !
ढाई अक्षर का सिमटा हुआ शब्दभर
अपने पहले अक्षर सा अधूरा
पूर्णता की चाह में एकाकी, जीवनभर।
कैसा प्यार !
नज़रों के नज़रें मिले रहने तक
क़ायम है बस जिसका संसार।
कैसा प्यार !
दिल में हज़ार तहें लिए
सोना एकसाथ बिस्तर पर।
कैसा प्यार !
रूप और यौवन की बगिया में
लगाना मेंहदी की चाहरदीवार।
कैसा प्यार !
मोड़ आने से पहले तक
हमक़दम बनकर चलना, बेज़ार।
कैसा प्यार !
दीप के बुझने तक कर पाना
रंगीन सितारों का इंतज़ार।
कैसा प्यार !
बार-बार कहने की ज़रूरत है क्या
और चुप हो जाना, हर बार।।
Sunday, April 6, 2008
समझ गए ना
इस ब्लॉग को ज़रा बेहतर ढंग से समझने के लिए कुछ बानगी---
1.
किया था फ़ैसला के घर से भाग कर शादी रचाएंगे
मगर जब वक्त आया तो, वो निकले न हम निकले।।
2.
मियां, इश्क करके भी देखा
मगर इसमें खर्चे बहुत हैं।।
3.
इश्क़ ने ग़ालिब तिकोना कर दिया
वरना हम भी आदमी चौकोर थे।।
4.
कौन कहता है कि माशूका मेरी गंजी है
'चांद' के सिर पे कहीं बाल उगा करते हैं।।
...शेष फ़िर।
1.
किया था फ़ैसला के घर से भाग कर शादी रचाएंगे
मगर जब वक्त आया तो, वो निकले न हम निकले।।
2.
मियां, इश्क करके भी देखा
मगर इसमें खर्चे बहुत हैं।।
3.
इश्क़ ने ग़ालिब तिकोना कर दिया
वरना हम भी आदमी चौकोर थे।।
4.
कौन कहता है कि माशूका मेरी गंजी है
'चांद' के सिर पे कहीं बाल उगा करते हैं।।
...शेष फ़िर।
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