Tuesday, August 12, 2008

उसका ख़त



उसका ख़त

जो शुरू होता था 'प्यार' से

प्यार जो जगाता था अपनापन

और जोड़ देता था मुझे सीधे मेरे यार से

फ़िर शुरू होता था सिलसिला

उसकी नाराज़गी के दौर का

जहां होती थी सिर्फ नाराज़गी

कड़ुवाहट का अंश कभी न मिला

वो ख़त

ख़त्म होता था एक कशिश के साथ

और दिलाता था मुझे एहसास

कि लिखना है उसे एक ख़त मीठा सा

आहिस्ता-आहिस्ता बन गया वो प्यार

महज़ एक सामान्य सा अभिवादन

और अंत एक बेजान रस्म अदायगी

फ़िर एक दिन अचानक

शब्द और शायद रिश्ते भी गए ठहर

बदल गया मिजाज़, पूरा का पूरा आलम

वो मेरा यार, हो गया मुझसे ग़ैर

आज मिला उसका ख़त

शुरुआत से ही 'कैसे हो' का प्रश्न दागता

प्रश्न या अभिवादन ? क्या कहें

था इसमें मेरे यार का दिल भी झांकता

जहां सिमट गया था दायरा मेरे वास्ते

भटक गए थे मेरी ओर आने के हर रास्ते

और अंत में एकदम ख़ाली

मेरी ही तरह बिल्कुल एकाकी-तुम्हारी अनामिका

ऐसा क्यूं

हमारे रिश्तों को देकर प्यारा सा नाम

यूं आसमां से ज़मीं पर गिराया क्यूं

कोई तो सबब होगा

इस बात का, तुम्हारे अंदाज़ का

अब तो सिर्फ अंदाज़े पर ही टिकी है उम्मीद

किसी रोज़ बदलेगा वो यूं

पा सकूंगा मैं फ़िर वही शुरुआत

तुम्हारा ख़त प्यार भरा

अंत तक प्यार के साथ ।।

Tuesday, August 5, 2008

लकड़ी का बुत



एक बुत बनकर बैठना

किसी से रूठकर

बहुत आसान है

कि कोई आए

और मनाए

या फ़िर

जानबूझकर किसी को सताने को

उससे बेख़बर, चुपचाप

एक बुत सा बैठ जाना भी नहीं है मुश्किल

कि अपनी उपेक्षा से क्षुब्ध

वो समझे तुम्हारा 'श्री'

और भरमाए तुम्हारा दिल

ये भी नहीं है तनिक मुश्किल

कि

बन जाओ बुत कि

उतारे कोई तस्वीर

गढ़े तुम्हारा रूप-लावण्य, अंग-प्रत्यंग

और बढ़ाए अपनी ख्याति की जागीर

लेकिन

एक पुरजवां महफ़िल में

सबके बीच चुपचाप

एक बुत बनकर बैठना कैसा होता है

पूछो कोई उससे

जो घिरा है कथित अपनों से

उनके व्यंग्यरूपी सवालों से

कि जनाब, कहां खोए हैं आप ?

ये सवाल कोई आमंत्रण नहीं है

बल्कि है एक घिनौनी कोशिश

उस अहसास की शिद्दत को कुछ और बढ़ाने की

कि हां,

साहिल डूब रहा है

मगर अफ़सोस साथियो !

मैं तो एक लकड़ी का बुत हूं

जो गल कर मिटने से पहले

तुम्हारे अनंत गहराइयों में दफ़न करने के बाद भी

तैरता रहेगा

सबसे ऊपर

बहुत आगे

बहुत दूर ।।

Saturday, August 2, 2008

आदत है उनकी



अहद-ए-वफ़ा तोड़ना आदत है उनकी

राह में दिल जोड़ना आदत है उनकी


इस ज़माने में कहीं पीछे न रह जाएं

दोस्तों को छोड़ना आदत है उनकी


अब जो बिछड़ा, कौन दोबारा मिलेगा

पल में मुंह को मोड़ना आदत है उनकी


हैं बहुत गुंचे, महकने के लिए

शाख़ को यूं तोड़ना आदत है उनकी

तो, बदल ली चाल, न घबराइये (जानता हूं)

हार पे जी-तोड़ना, आदत है उनकी ।।