Friday, April 25, 2008

कैसा प्यार !

धूमिल जी ने आज के युवा प्यार को लेकर कभी दो लाइनें कहीं थीं---
'' चुटकुलों से घूमती लड़कियों के स्तन नकली हैं

और नकली हैं युवकों के दांत। ''

इस अमूल्य ज्ञान के सहारे बेताल की लय कुछ यूं कहती है-



कैसा प्यार !

ढाई अक्षर का सिमटा हुआ शब्दभर

अपने पहले अक्षर सा अधूरा

पूर्णता की चाह में एकाकी, जीवनभर।

कैसा प्यार !

नज़रों के नज़रें मिले रहने तक

क़ायम है बस जिसका संसार।

कैसा प्यार !

दिल में हज़ार तहें लिए

सोना एकसाथ बिस्तर पर।

कैसा प्यार !

रूप और यौवन की बगिया में

लगाना मेंहदी की चाहरदीवार।

कैसा प्यार !

मोड़ आने से पहले तक

हमक़दम बनकर चलना, बेज़ार।

कैसा प्यार !

दीप के बुझने तक कर पाना

रंगीन सितारों का इंतज़ार।

कैसा प्यार !

बार-बार कहने की ज़रूरत है क्या

और चुप हो जाना, हर बार।।

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