धूमिल जी ने आज के युवा प्यार को लेकर कभी दो लाइनें कहीं थीं---
'' चुटकुलों से घूमती लड़कियों के स्तन नकली हैं
और नकली हैं युवकों के दांत। ''
इस अमूल्य ज्ञान के सहारे बेताल की लय कुछ यूं कहती है-
कैसा प्यार !
ढाई अक्षर का सिमटा हुआ शब्दभर
अपने पहले अक्षर सा अधूरा
पूर्णता की चाह में एकाकी, जीवनभर।
कैसा प्यार !
नज़रों के नज़रें मिले रहने तक
क़ायम है बस जिसका संसार।
कैसा प्यार !
दिल में हज़ार तहें लिए
सोना एकसाथ बिस्तर पर।
कैसा प्यार !
रूप और यौवन की बगिया में
लगाना मेंहदी की चाहरदीवार।
कैसा प्यार !
मोड़ आने से पहले तक
हमक़दम बनकर चलना, बेज़ार।
कैसा प्यार !
दीप के बुझने तक कर पाना
रंगीन सितारों का इंतज़ार।
कैसा प्यार !
बार-बार कहने की ज़रूरत है क्या
और चुप हो जाना, हर बार।।
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