चंद सतरें जो किसकी हैं याद नहीं...लेकिन जो है वो हमेशा याद रखने वाली हैं
तुम भी निकले कच्चे यार
तुमसे अच्छे बच्चे यार
किया भरोसा तुम पर मैने
खाते फिरते गच्चे यार।
मान गए तुम कितनी जल्दी
मेरी पहरेदारी को
जाने किसने आग लगाई
हम न इतने लुच्चे यार।
हमने क्या-क्या जतन किए
अपनी साख़ बचाने को
पर तुमने इल्ज़ाम लगाए
हरदम खाए गच्चे यार।
फिर टूटा विश्वास हमारा
फंसकर दुनियादारी में
किसको दिल का ज़ख्म दिखाएं
मिलते हैं कब सच्चे यार।
जब भी सोचूं गुज़री बातें
अपना जी भर आता है
बगुल पंख से धवल सुनहरे
दिन थे कितने अच्छे यार।।
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