Friday, April 25, 2008
वफ़ा का सबक़
(बेताल के संगी-साथियों, लंबे अरसे बाद यहां कुछ ला पाया हूं...कुछ अपनी बातें तो कुछ औरों की....कई बार उन लोगों के नाम मुझे याद नहीं रहते....इसलिए माफ़ करें....मुझे इस बात का अफ़सोस रहेगा....लेकिन दोस्तो, उन्होंने जो अच्छी बात कही उसे मैं ज्याद से ज्यादा लोगों के साथ शेयर करना चाहता हूं...और अपनी बातों से कम अहमियत उन्हें नहीं देता....शुरुआत भी मैं एक कवियित्री की रचना से ही कर रहा हूं..उनका नाम मुझे याद नहीं...)
वो भूलते हों तो भूल जाएं
वफ़ा का सबक़
हमारी तो याददाश्त अच्छी है।
हमक़दम बन के वो रास्ता बदल लें
सफ़र में तो क्या ?
अपनी तो फ़ितरत सच्ची है।
वो रखते हों भोर में नाप-तौल कर क़दम
हमें तो अंधेरों की भी छलांग लगती अच्छी है।
वो खाते हों आम पक जाने के बाद
हमें तो कच्ची अमिया भी लगती अच्छी है।
प्यार में यूं नफ़ा-नुक़सान क्या सोचना ?
ये सीधी सड़क तो नहीं !
कूद जाओ झाड़ियों में तो एक दिन
बनती पगडंडी पक्की भी है।।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
अगड़म बगड़म भात है
वाह भई वाह क्या बात है
Post a Comment