Friday, April 25, 2008

मुझे पुकार लो


कविवर हरिवंश राय बच्चन की एक अमर रचना---

इसलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !

ज़मीन है न बोलती न आसमान बोलता

जहान देखकर मुझे नहीं ज़बान खोलता

नहीं जगह कहीं जहां न अजनबी गिना गया

कहां-कहां न फिर चुका दिमाग़ दिल टटोटलता

कहां मनुष्य है कि जो उम्मीद छोड़कर जिया

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !

तिमिर-समुद्र कर सकी न पार नेत्र की तरी

विनिष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी

न कूल भूमि का मिला, न कोर भोर की मिली

न कट सकी न घट सकी, विरह भरी विभावरी

कहां मनुष्य है जिसे कमी खली न प्यार की

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे दुलार लो !

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !

उजाड़ से लगा चुका उम्मीद मैं बहार की

निदाघ से उम्मीद की बसंत के बयार की

मरुस्थली मरीचिका सुधामयी मुझे लगी

अंगार से लगा चुका उम्मीद मैं तुषार की

कहां मनुष्य है जिसे न भूल शूल सी गड़ी

इसीलिए खड़ा रहा कि भूल को सुधार लो !

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो !

पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो !

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