तन्हाई के आलम में तुम ही तुम याद आते हो
कभी कुछ गुनगुनाते हो कभी तुम मुस्कुराते हो
नज़ारे छिप गए हैं सब, तुम्हारा अक्स नज़रों में
करम इतना ही क्या कम था जो रातों को जगाते हो
अकेला हूं मैं महफ़िल में, कोई नज़रें इनायत हों
हमी से प्यार है फिरभी भला क्यूं दिल जलाते हो
निगाहे नाज़ से तूने हमेशा ही किया घायल
है ख़ाली आज क्या तरकश, जो तुम नज़दीक आते हो
सभी हैं बेख़बर तुझसे, तुझी से इल्तज़ा करते
दवा-ए-दिल के बदले तुम भी, हौले से मुस्कुराते हो ।