Monday, June 30, 2008

तुम ही तुम याद आते हो



तन्हाई के आलम में तुम ही तुम याद आते हो

कभी कुछ गुनगुनाते हो कभी तुम मुस्कुराते हो

नज़ारे छिप गए हैं सब, तुम्हारा अक्स नज़रों में

करम इतना ही क्या कम था जो रातों को जगाते हो

अकेला हूं मैं महफ़िल में, कोई नज़रें इनायत हों

हमी से प्यार है फिरभी भला क्यूं दिल जलाते हो

निगाहे नाज़ से तूने हमेशा ही किया घायल

है ख़ाली आज क्या तरकश, जो तुम नज़दीक आते हो

सभी हैं बेख़बर तुझसे, तुझी से इल्तज़ा करते

दवा-ए-दिल के बदले तुम भी, हौले से मुस्कुराते हो ।

Friday, June 27, 2008

तेरी आग़ोश में...



ये बारिश का मौसम, ये भीगी हवाएं

ये नम आसुओं से हुई हैं निगाहें

ये मौसम गुलाबी, ये दिल की सदाएं

ये वीरानियां, सिर्फ तुम याद आए

फिज़ाओं में बिखरा हुआ है तरन्नुम

समां हो चला है ज़रा आशिकाना

घटाएं भी बल खा के इतरा रही हैं

कमी सिर्फ ये है कि तुम याद आए

तेरे देश में छोड़ आया जो मौसम

सुहानी थी हर शाम अब वो नहीं है

तेरी आग़ोश में सारे ग़म से परे था

अब हर एक ग़म में तुम्ही याद आए।

Wednesday, June 25, 2008

जान भी कमतर लगे है...



इस वफ़ा का क्या सिला दूं जान तुझको

जान भी कमतर लगे है जान मुझको

मेरी हसरत और मेरी आरजूएं

सब हैं तेरे प्यार की सौग़ात मुझको

क़दमपोशी को सदा नज़रे बिछाए

इस वफ़ा ने ही सिखाया प्यार मुझको

इस नशेमन ने किया रुसवा तुझे जो

मरमरी हाथों ने फिरभी थामा मुझको

माफ़ करना ऐ मुझे जान-ए-वफ़ा

अब जो समझा हूं नहीं भूलूंगा तुझको ।

Saturday, June 21, 2008

तेरे निसार प्रियतमा


तेरे निसार प्रियतमा,

जो तुझको मुझसे प्यार है

तेरा बयान बा-ख़ुदा

दिल मेरा शुक्रगुज़ार है।

है ख़ुदा गवाह, ये आसमां

दिल टूटने के ख़ौफ़ से

मैं न कह सका तुझे कभी

दिल मेरा बेक़रार है

मेरा प्यार तेरे नयन में

मैं उसी से था कुछ यूं बंधा

क्यूं तू न ये समझ सकी

मेरा ठहरना इक़रार है ।

'मुझे सिर्फ तू ही पसंद है'

तेरे लब हिले, मेरा दिल गया

और शर्मीली उन नज़रों का

मुझे आज तक वो ख़ुमार है

तेरे निसार प्रियतमा...।।

Thursday, June 19, 2008

वो तो खाली बात के छलिया


हम तो खाली बात के रसिया

इश्क़ न कर पाए

वो तो खाली बात के छलिया

इश्क़ न कर पाए

हमने ज़ुबां खोली तो उसमें

दिल भी बोल उठा

वो तो खाली चुप्पी साधे

मंद-मंद मुस्काए

अपने धड़कते दिल को हमने

क़दमों पे बिछा दिया

नाज़-ओ-अदा से फ़ेर के मुंह

वो हमको तड़पाए

कितना लंबा सफ़र तय किया

सांसें उखड़ गईं

आह ! न निकली, वाह ! न निकला

चार क़दम न आए ।।

Wednesday, June 18, 2008

रिश्ता यूं ही सही...


उनके जवाब आए, कुछ तो सुकूं मिला

लेकिन है उन जवाबों में अब भी बहुत गिला

आया भी जो जवाब तो पोशीदा इस तरह

हसरत थी दिल खुलेंगे, दिल ही नहीं मिला

तल्ख़ी भरे वो नक्श तहरीर में दिखें

बातों में था कभी जो, जवाबों में न मिला

क़तओं की चंद ज़िंदगी में, गुज़री तमाम उम्र

आया जो है जवाब, वो है इश्क़ का सिला

चलिए यही क्या कम है, अदावत भी है कबूल

रिश्ता यूं ही सही, वो अगर हमसे न मिला ।।

Tuesday, June 17, 2008

ताजमहल था ख्वाबों का...



एक नशा सा तारी था, रफ्ता-रफ्ता उतर गया

ताजमहल था ख्वाबों का, ज़र्रा-ज़र्रा बिखर गया

धूप खिली थी आंगन में, लम्हा-लम्हा सिमट गई

चांद टिका था खिड़की पे, हल्का-हल्का उतर गया

फूल खिले थे गुलशन में, पत्ता-पत्ता ज़र्द हुआ

स्याह बहुत था बादल ये, टुकड़ा-टुकड़ा बिखर गया

ताब बहुत था सांसों में, धड़कन-धड़कन होम हुई

झील सी गहरी थी आंखें, क़तरा-कतरा तरस गया

एक इशारे में वो जादू, जाते-जाते जान बची

जोश बहुत था इस दिल में, डरता-डरता ठहर गया ।

Sunday, June 15, 2008

दिल है दरिया उनका



दस्त-ओ-पा उनके कभी तंग न थे

लेकिन, वो हुनरमंद भी कम न थे

सो, शाही उनकी न थी कबूल हमें

ज़रा से तौर-तरीके हमें पसंद न थे ।

हर वक्त बनावट, वो कसीदेकारी

बात वो बात में उलझा के बनावे सारी

उस पे, सीधी-सादी ये समझ बेचारी !

ये पेच-ओ-ख़म के सलीके हमें पसंद न थे ।

कभी तो अब्र सा बरसें, कभी चमक भी नहीं

जान कहकर कभी लिपटें, छोड़ जाएं कहीं

आज जो है ग़लत, कल तक तो वो बतावे थे सही

रस्म-ओ-राह के ये अंदाज़ हमें पसंद न थे ।

कुछ किया था जभी तो बात उठी

बात उनसे न हो सकी जभी तो बात उठी

बस इसी तर्क-ए-वफ़ा पर ही वो भड़क उठी

वफ़ा में ऐसे दिखावे हमें पसंद न थे ।

वगर्ना, दस्त-ओ-पा उनके कभी भी तंग न थे ।।

Friday, June 13, 2008

एक तस्वीर



सारे रंग जोड़कर उसकी इक तस्वीर बनाई

शायद फिरभी कोई कमी थी, उसको रास न आई

क़तरा-क़तरा धूप जुटाकर रंग भरा चेहरे में

उसने फेर लिया चेहरा और शाम घनी घिर आई

अप्सराओं का रूप चुराकर उस पर लुटा दिया

उसने नज़र टिका दी मुझपे और ली इक अंगड़ाई

जाने कितनी कलियों का रस लेकर होठ गढ़े

फिक़रे लिए हज़ार वो बस हौले से मुस्काई

क़ायनात ठुकरा कर मेरी वो इठला कर चल दी

क्या गु़रूर था उसमें, मुझसे जाने कौन लड़ाई

अब इन ख़ाक़ों में कैसे में किसके रंग भरूं

निहां हुआ महबूब मेरा और मीलो है तन्हाई ।

Wednesday, June 11, 2008

अपने नाम का ख्याल रखिएगा !



कितने रंगों में ढली है

फूल सी, लगती कली है

तितलियों सी घूमती है

नाम तो देखो मगर...


चेहरा मानो दुपहरी है

ज़ुल्फ़ है या शब घिरी है

लब के शोलों की लड़ी है

नाम तो देखो मगर...


हर अदा में बिजली सी है

बातें जैसे कतरनी है

नज़रों में शम्मा जली है

नाम तो देखो मगर...


हंसी उसकी बे-दिली है

करती हरपल दिल्लगी है

क्या बला की कारीगरी है

नाम तो देखो मगर...


है सही पर कैसे कह दूं

नाम में रखा है क्या

संग मेरे अब माहज़बीं का

नाम है बस, और क्या ?

Saturday, June 7, 2008

ऐयारी पे मिटे



मासूम चेहरे की अदाकारी पे मिटे

हम तो उस शोख की ऐयारी पे मिटे

क्या ख़बर थी, वो मेरा यार करेगा ऐसा

हम तो उस यार की दिलदारी पे मिटे

लब तो टकराए, न छू सके दिल मेरा

हम तो लब-ए-अफशां की फुसूंकारी पे मिटे

उसकी आग़ोश में सूझे है कहां फिर कुछ भी

हम तो उन रेशमी ज़ुल्फ़ों की गिरफ्तारी पे मिटे

वो चले जाते हैं, चले आए जैसे

हम तो उस हसीं शै की ख़ुमारी पे मिटे

किस अदा से वो बनावे है बातें कितनी

हम तो उस नादां की समझदारी पे मिटे ।

क्यों उलझते हैं हम भी ऐयारों से



सफ़ीने क्यों उलझते हैं किनारों से

क्यों उलझते हैं हम भी ऐयारों से

कल मिला था मुझे रहजन, मगर छोड़ दिया

आज मोहसिन ने ही ज़ख्मी किया तलवारों से

धूप हल्की थी, हवा भी पुरनम

बिछड़ी मंज़िल यूं, कि पूछा था मददगारों से

लाख चाहा न खिल सका ये दिल

हो तो हो महफ़िल जवां दिलदारों से

डूबना ही था सफ़ीना, खुशी जो उनकी थी

क्या भला पार लगाता उसे पतवारों से ।

Friday, June 6, 2008

तुम्हारा अंदाज़ मेरे ख्याल से मिलेगा कब ?


तुम भी जी रहे थे अपने अंदाज़ में

मैं भी था खोया खोया अपने ख्याल में

तुम भी खुश थे

मैं भी खुश था

लेकिन शायद कहीं कोई कमी थी

एक दिन अचानक तुम मिले

तुम्हारा अंदाज़ बदला

और मेरे ख्यालों में भी कोई बसने लगा

धीरे-धीरे किसी 'कमी' का अहसास बहुत शिद्दत से बढ़ा

मेरे ख्यालों में अब सिर्फ तुम थे

और तुम्हारा भी अंदाज़ सिर्फ मुझे बयां करने लगा

गोकि, हम एक हो गए

एक-दूजे के लिए हो गए

मगर वक्त ने फ़िर करवट बदली

और तुम देख रहे हो

मैं अब और गहरे ख्यालों में गुम हूं

तुम्हारी चमकती पेशानी और पैरों की रुनझुन

गवाह है तुम्हारे नए अंदाज़ का

वो 'कमी' जो कभी हमें पास लाई थी

कितनी गहरी और स्याह हो गई है अब

सोचता हूं, ये वक्त फ़िर करवट लेगा ?

तुम्हारा अंदाज़ मेरे ख्याल से मिलेगा कब ?

Thursday, June 5, 2008

मनाऊं भी तो कैसे



मनाऊं भी तो कैसे, खड़ा सारा
ज़माना

वहां रंगीनियां हैं, इधर छाया वीराना

समझ उनमें बहुत है, करें क्यूं सौदा ऐसा

महल ऊंचे क्या कम हैं, ये खंडहर पुराना

हंसी है बेशक़ीमती, खुद उनको भी ख़बर है

अदा थी बस ज़रा सी, हुआ कोई दीवाना

नई उम्रों का क्या है, अहद भी क्या बला है

वो मौसम देखते हैं, यहां गुज़रा ज़माना

मिला दिल ही नहीं बस, सभी कुछ तो मिला है

नहीं मंज़ूर उनको, दिल के हाथों गंवाना

नफ़ा-नुकसान भी तो, खुदी को सोचना है

कहां क़िरदार डूबा, किसी को क्या बताना ।।

Tuesday, June 3, 2008

कि पत्थर दिल न हो जाए पत्थर


इसी डर से मैं बुतख़ाने न पहुंचा

कि पत्थर दिल न हो जाए पत्थर

जहां बसते हैं नानक, सिर नवाया

है रिसता फ़िरभी खूं यूं, लगी फ़िर आज ठोकर ।

था मेरे संग वो संगदिल

मगर मुझसे कटा था

झुका तो साथ में सिर

उठा तो वो उठा था

बड़ी हसरत थी उसकी, मिटी है चूर होकर ।

क़दम हमराह थे तब

ज़ुबां भी बेयक़ीनी बा-अदब

उड़ चली पाक़ीज़ा ख़ुश्बू

घटा बाहर घिरी जब

कहें किस से भला क्या, गिरी है बिजली मुझ पर


इसी डर से मैं बुतख़ाने न पहुंचा

कि पत्थर दिल न हो जाए पत्थर ।।