Friday, April 25, 2008

आसमान से टूटा तारा


किस क़ीमत पर क्या खुशियां पाई हैं तुमने, तुम जानो

हम तो इक मासूम कली की मौत का मातम करते हैं।

दीप बुझा कर साल किया रौशन कैसे ये तुम जानो

हम तो 365 दिन की बिखरी रातें गिनते हैं।

छोड़ के दो पग, साथ जुड़े कितने क़दमों से, तुम जानो

हम तो बिछड़े क़दमों की बस दूर से आहट सुनते हैं।

चमकीली दुनिया के पीछे, कहां चलीं तुम, तुम जानो

हम तो सीधी-सादी दुनिया के, टूटे सपने बुनते हैं।

खुद तुमने तय की जो मंज़िल, कहां है अब वो तुम जानो

हम तो हर दिन तुम दोनों के, बीच की दूरी तकते हैं।।

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