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कुछ और ही होती हैं बिगड़ने की अदाएं...बनने ही संवरने से ही आलम नहीं होता...जी हां, तुक...लय और ताल ये दूसरों की नज़र की बात है...दिल जो महसूस करता है और उसके बाद दिल से जो निकलता है उसको किसी दूसरी नज़र की ज़रूरत नहीं....बेताल ऐसी ही ताल पर थिरकने की एक कोशिश है।
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