मनाऊं भी तो कैसे, खड़ा सारा ज़माना
वहां रंगीनियां हैं, इधर छाया वीराना
समझ उनमें बहुत है, करें क्यूं सौदा ऐसा
महल ऊंचे क्या कम हैं, ये खंडहर पुराना
हंसी है बेशक़ीमती, खुद उनको भी ख़बर है
अदा थी बस ज़रा सी, हुआ कोई दीवाना
नई उम्रों का क्या है, अहद भी क्या बला है
वो मौसम देखते हैं, यहां गुज़रा ज़माना
मिला दिल ही नहीं बस, सभी कुछ तो मिला है
नहीं मंज़ूर उनको, दिल के हाथों गंवाना
नफ़ा-नुकसान भी तो, खुदी को सोचना है
कहां क़िरदार डूबा, किसी को क्या बताना ।।
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