Sunday, June 15, 2008

दिल है दरिया उनका



दस्त-ओ-पा उनके कभी तंग न थे

लेकिन, वो हुनरमंद भी कम न थे

सो, शाही उनकी न थी कबूल हमें

ज़रा से तौर-तरीके हमें पसंद न थे ।

हर वक्त बनावट, वो कसीदेकारी

बात वो बात में उलझा के बनावे सारी

उस पे, सीधी-सादी ये समझ बेचारी !

ये पेच-ओ-ख़म के सलीके हमें पसंद न थे ।

कभी तो अब्र सा बरसें, कभी चमक भी नहीं

जान कहकर कभी लिपटें, छोड़ जाएं कहीं

आज जो है ग़लत, कल तक तो वो बतावे थे सही

रस्म-ओ-राह के ये अंदाज़ हमें पसंद न थे ।

कुछ किया था जभी तो बात उठी

बात उनसे न हो सकी जभी तो बात उठी

बस इसी तर्क-ए-वफ़ा पर ही वो भड़क उठी

वफ़ा में ऐसे दिखावे हमें पसंद न थे ।

वगर्ना, दस्त-ओ-पा उनके कभी भी तंग न थे ।।

1 comment:

SWETA TRIPATHI said...

बहुत अच्छे एक शहनशांह को किसी की सुननी भी नहीं चाहिए.उसे अपने अंदाज में जीना चाहिए बिना किसी की पहवाह किए.