भरी महफ़िल में हाल-ए-दिल जो पूछा आपने हमसे
बजा तरह से कर दी पेश साहेब दोस्ती हमसे
कि देखा और झट से पूछ बैठे-हाल कैसा है
न कोई दिलनवाज़ी की न कोई बंदिगी हमसे
समझ में आ गई हमको रवायत ये नई उनकी
अदूं को जा संभाले फ़िर जो वो छूटें ज़रा हमसे
कहें क्या आपकी तर्ज़-ए-तपाकी पर भला अब हम
कशिश कुछ आज कमतर है, अदावत न सही हमसे
यहां ये आ पड़ी मुश्किल कि रोकें किस तरह उनको
उधर वो मुस्कुरा कर दूर होते जा रहे हमसे।।
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