Sunday, May 18, 2008

चंद बातें हैं मेरी जां



चंद बातें हैं मेरी जां, कोई इल्ज़ाम तो नहीं

मुझसे तू हो जुदा, तुझसे मैं जुदा तो नहीं

हम नहीं एक अगरचे यही माना तुमने

तू रहे 'तू' सही, मैं तो कभी 'मैं' नहीं

क्यूं भला भूलती हो जान-ए-वफ़ा

रातभर ही रहेगी रात, उससे आगे तो नहीं

बातों-बातों में निकल जाएगी वो बात भी, जां

दरम्यां 'कुछ' है हमारे, 'बहुत कुछ' तो नहीं

फ़िर चलेंगे उन्हीं राहों पे संग मिलके हम

मुड़के इक देख ज़रा, मैं भी ठहरा तो नहीं

चंद बातें हैं मेरी जां, कोई इल्ज़ाम तो नहीं

मुझसे तू हो जुदा, तुझसे मैं जुदा तो नहीं।।

2 comments:

betaal said...

कककक

SWETA TRIPATHI said...

परछाई रिश्तों की याद बन जाती है
मिलकर यादें यकीन में बदल जाती है
कभी कुछ होते हुए भी नहीं दिखता
कभी कुछ दिखता तो है पर होता नहीं
रिश्ते ऐसे ही खट्टी मिट्टी परछाई है
जीवन के रंग अपने अंदर समाए है
खुशी में आसूं बनकर बहते है
गम में हमसफर को याद करते है
रिश्तों की चादर में यादों को संजोए
ढ़ूढते है किनारा हर परछाई के साथ
ऐसा ही कुछ जीवन की परछाई है
जो कभी रुलाती है तो कभी हंसाती है
परिछाई को देखकर यादों में उलझ जाते है हम
सोचकर भी नहीं सोचपाते है हम
ये हम ही है या कोई और
एक सवाल जो उनसुलझे रह जाते है
लेकिन साथ चलने वाली परछाई को
साथी समझना चाहिए,ना दिखने पर
खुद को अकेला नहीं समझना चाहिए
जो छाया जीवन के हर कदम में साथ होती है
परिस्थितियों के साथ बदलती नहीं
पहचानना तो हमारा काम है
कि परछाई हमारे साथ है
या हमसे अलग