बदलते हुए
मैंने सिर्फ वक्त ही नहीं
लोगों को भी देखा है
बदलते हुए
मैने सिर्फ औरों को नहीं
अपनों को भी देखा है
वो अपने जो आज भी मेरे हैं
शायद मैं ही उनका नहीं रहा
लेकिन इस बात का शिकवा क्यूं
क्योंकि ये भी अहसान है उनका
बदलें हैं अपने
तो बदले हैं ग़ैर भी
और जो साथ अपने ले गए
हिमालय से भी ऊंचे शिखरों पर
तलहटियों में जीने की कूवत
और लड़ने का हुनर भी
नेमत है उन्हीं की ।।
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स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गए श्रृंगार सभी बाग़ के, बबूल से
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे ।
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
पांव जब तलक उठे कि ज़िंदगी निकल गई
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई
चाह तो निकल सकी ना पर उमर निकल गई
गीत अश्रु बन गए, शब्द हो हवन गए
रात के सभी दिए धुआं-धुआं पहन गए
और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवां गुज़र गया...
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