Friday, May 30, 2008

नेमत



बदलते हुए

मैंने सिर्फ वक्त ही नहीं

लोगों को भी देखा है

बदलते हुए

मैने सिर्फ औरों को नहीं

अपनों को भी देखा है

वो अपने जो आज भी मेरे हैं

शायद मैं ही उनका नहीं रहा

लेकिन इस बात का शिकवा क्यूं

क्योंकि ये भी अहसान है उनका

बदलें हैं अपने

तो बदले हैं ग़ैर भी

और जो साथ अपने ले गए

हिमालय से भी ऊंचे शिखरों पर

तलहटियों में जीने की कूवत

और लड़ने का हुनर भी

नेमत है उन्हीं की ।।

1 comment:

Apni zami apana aasam said...

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से

लुट गए श्रृंगार सभी बाग़ के, बबूल से

और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे

कारवां गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे ।

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई

पांव जब तलक उठे कि ज़िंदगी निकल गई

पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई

चाह तो निकल सकी ना पर उमर निकल गई

गीत अश्रु बन गए, शब्द हो हवन गए

रात के सभी दिए धुआं-धुआं पहन गए

और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके

उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे

कारवां गुज़र गया...