Friday, May 16, 2008

बेबाक आंखें


तेरी बेबाक आंखें
सवाल बहुत करती हैं
किसी सम्त शर्माती, थोड़ा झुकतीं
तो हालात बदल सकती हैं।

बेबाक आंखों में छिपे सवाल
गोकि तुम्हारी कशमकश
कभी 'तुम कौन' कभी सिर्फ मेरा ही ख्याल
भरोसे में ये कमी बहुत खलती है
तेरी बेबाक आंखें सवाल बहुत करती हैं।

इक भरोसा ही तो है प्यार
चाहो तो लम्हाभर में, वगर्ना सारी उम्र
परखते रहो, करते रहो इंतज़ार
इस इंतज़ार से तो दूरियां ही बढ़ती हैं
तेरी बेबाक आंखें सवाल बहुत करती हैं।

दूरियां बदल देती हैं मंज़िलें
राहें खुद-ब-खुद जुदा-जुदा
मुख्तसर सी बात भी बन जाती हैं मुश्किलें
ऐसे में, तबीयत भी कहां मिलती है
तेरी बेबाक आंखें सवाल बहुत करती हैं।

जिन सवालों के नहीं कोई मानी
उनको ज़ेहन-ओ-दिल से मिटाओ, या रब
बे-कशिश, बे-तआल्लुक सी टिकी बेबाक आंखें
उन आंखों को किसी रोज़ झुकाओ, या रब ।।

1 comment:

अर्चना राजहंस मधुकर said...

बहुत बढ़िया लिखा है...ग़हरे विष्य वस्तु को अपने अंदाज़ में कहने की ये अदभुत कला है....ये आप ही कर सकते हैं.....लिखते रहिए.....कुछ लोग पढ़ कर ही जीते :)