यकलख़ जो आ गई है मेरी याद शब्बा ख़ैर
कर लेना मुझको याद यूं ही तुम ब-वक्त-ए-सैर
मैं क्यूं कहूं कि कैसे रहूंगा तेरे बग़ैर
जा रहिए वां खुशी से मनाउंगा रब से ख़ैर
देवों के इंद्र के भी हैं छूटे सगे-औ-दैर
यां मैं पड़ा हूं तन्हा नहीं किस्सा ये कोई ग़ैर
क्यूं कर न सह पाऊं तेरा रस्म-ओ-राह-ए-ग़ैर
बेशक़, करो मुआफ़ हूं तंगी-ए-दिल पे ज़ेर
डूबा मैं गोकि खींचा था उसने, न फ़िसले पैर
दिल को है फ़िरभी दोस्त, अक्ल से अजब सा बैर।।
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