Sunday, May 18, 2008
इश्क़ आफ़त है तो...
इश्क़ आफ़त है तो आफ़त ही सही
दिल नहीं उनकी दिल्लगी थी, सही
नज़रें शर्माईं, लजाईं न सही
वो हंसी, माना फुसूंकार सही
हाथ में हाथ का वादा न सही
हमक़दम बनने का भी कोई इरादा न सही
बातें उनकी थीं छलावा ही सही
तल्ख़ अंदाज़ उनकी आदत ही सही
हर इक बात पे उनसे मेरी तकरार सही
इन सही बातों में, इक ये भी सही
इश्क़ मुझको तो है, उनको न सही
और
मुझे अपने पे ये भरोसा है सही
ना सही, उम्रभर ना सही
वक्त-ए-रुख़सत तो वो समझेंगे सही
एक उनका भी था असीर सही
बस, ये भरोसा न टूटे, निकल जाए सही
फ़िर हुआ करे इश्क़ जो आफत, तो आफ़त ही सही।।
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3 comments:
कमाल का लिखा है आपने..इन अनुभवों से तो मैं रोज ही बावस्ता होता हूं...गजब ढ़ंग से शव्दों में पिरोया है आपने...
"पढ़ना है तो इस लेख को पढ़ने का हुनर सीख
इश्क़ कुछ नही है एक आफ़त से ज्यादा"
वाह सर वाह,किस खूबी से इश्क की हकीकत को समझाया है आपने......
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