Friday, May 30, 2008

चले थे साथ तुम और हम



कश-आं-कश में अजब सी आज, पड़ा रिश्तों में पेच-ओ ख़म

वहां ग़र दोस्त हैं तो भी, यहां दुश्मन नहीं हैं हम

वगरना चंद लम्हो में, सुलझ जाता ये किस्सा यूं

रहेंगे दोस्त के बनकर, बला से तुम कहो बरहम

मगर शिकवों से क्या हासिल, करें क्यूंकर शिकायत भी

नया तूने किया है क्या, जो रोएं नए सिरे से हम

अगरचे पूछ बैठा कोई, मुझसे डूबने का राज़

तो फ़िर ऐ छोड़ने वाले ज़रा कहियो, कहें क्या हम

तुम्हारा 'आज' हां सच है, मगर तारीख़ पीछे है

क़दम दो ही चले पर, चले थे साथ तुम और हम

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