Tuesday, July 29, 2008

ना तो अच्छा, ना तो सादा



मैं न अच्छा, मैं न सीधा

मैं न सुंदर, मैं न सादा

दुनिया ने है देखा मुझे

परतों में ही बस आधा

बातें हैं बेयक़ीनी

लहज़ा, हां, शरीफ़ाना

ताल्लुक़ है वहीं तक बस...

न तो थोड़ा, ना तो ज्यादा

तितली सा फरेबी

चटकीला, है मन काला

निभना भी है मुश्किल

न तो मीरा, ना तो राधा

मिन्नत हैं बेअसीरी

कोई मुझको न समझाना

मुझे याद नहीं अब कुछ

ना तो रिश्ता, ना तो वादा

जीने की अदा सीखी

दुनिया ! तुझी से जाना

ज़िंदा है वही बस जो

ना तो अच्छा, ना तो सादा ।।

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा, लिखते रहें.

पशुपति शर्मा said...

बहुत लय है... इस सीधे सादे इंसान में...
परतों में लिपटे आधे इंसान को ब्लॉग पर परत दर परत अनफॉल्ड होते देखना अच्छा एहसास है... लेकिन आपने अरसे से अपनी कोई परत नहीं उघेड़ी... कुछ कीजिए जनाब...