Saturday, August 2, 2008

आदत है उनकी



अहद-ए-वफ़ा तोड़ना आदत है उनकी

राह में दिल जोड़ना आदत है उनकी


इस ज़माने में कहीं पीछे न रह जाएं

दोस्तों को छोड़ना आदत है उनकी


अब जो बिछड़ा, कौन दोबारा मिलेगा

पल में मुंह को मोड़ना आदत है उनकी


हैं बहुत गुंचे, महकने के लिए

शाख़ को यूं तोड़ना आदत है उनकी

तो, बदल ली चाल, न घबराइये (जानता हूं)

हार पे जी-तोड़ना, आदत है उनकी ।।

7 comments:

Advocate Rashmi saurana said...

bhut bhadiya rachana. badhai ho.
aap apna word verification hata le taki humko tipani dene me aasani ho.

Vivekk singh Chauhan said...

vakai bhut sundar rachana. likhte rhe.

शोभा said...

अब जो बिछड़ा, कौन दोबारा मिलेगा


पल में मुंह को मोड़ना आदत है उनकी

वाह! क्या बात है।

मोहन वशिष्‍ठ said...

अहद-ए-वफ़ा तोड़ना आदत है उनकी
राह में दिल जोड़ना आदत है उनकी
इस ज़माने में कहीं पीछे न रह जाएं
दोस्तों को छोड़ना आदत है उनकी
अब जो बिछड़ा, कौन दोबारा मिलेगा
पल में मुंह को मोड़ना आदत है उनकी
हैं बहुत गुंचे, महकने के लिए
शाख़ को यूं तोड़ना आदत है उनकी
तो, बदल ली चाल, न घबराइये (जानता हूं)
हार पे जी-तोड़ना, आदत है उनकी ।।

क्‍या कहने मजा आ गया बहुत ही अच्‍छी रचना आपकी जनाब कहां थे इतने दिन अब जाकर मिले हो बहुत बहुत बधाई

मोहन वशिष्‍ठ said...

जयंत जी अगर मैं गलत नहीं हूं तो आप जयंत जी ही हैं ना

vipinkizindagi said...

इस ज़माने में कहीं पीछे न रह जाएं
दोस्तों को छोड़ना आदत है उनकी

bahut khub....
achche sher...

रवि रतलामी said...

वाह! बढ़िया ग़ज़ल है.