Friday, July 4, 2008

आए न कोई आंच...



दोस्ती की बात छिड़ी जब भी कहीं पर

मैं आ के रुका हूं सदा, ऐ दोस्त तुझी पर

दिल तो किसी को दे चुके हैं पहले से ही हम

अब करते हैं इज़रा-ए-वफ़ा, तेरे ही दम पर

दोस्ती को पाक़ सदा समझेगा भला कौन

है सारे जहां की नज़र, बस तुम पे और हम पर

हाथों को है हर वक्त मेरे रोका तुम्ही ने

जब-जब भी ये पहुंचे हैं किसी, भरते ज़ख़्म पर

मैं मांगता हूं ये दुआ परवरदिगार से

आए न कोई आंच मेरे निगहबान पर ।


1 comment:

Unknown said...

though its hard to define dosti but u really did justice to the writeup .....pure,beautiful,uncorruptible ,true .....dosti is above any relationship.......its a silent prayer ...... perfect .